महाराष्ट्र चुनाव से पहले इस तरह की बातें बार-बार सुनने को मिल रहीं थीं कि महाराष्ट्र में कांग्रेस और एनसीपी की राजनीति ख़’त्म होने की कगार पर है. एनसीपी को लेकर तो कई लोग कह रहे थे कि एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार अकेले कितनी मे’हनत कर सकेंगे, पार्टी के पुराने क़द्दावर नेता जबकि पार्टी छोड़कर जा रहे हैं. चुनाव हुए और नतीजे आये, नतीजों में भले ही एनसीपी और कांग्रेस बहुमत हासिल नहीं कर सकीं लेकिन एनसीपी और कांग्रेस दोनों ने ही अपनी उम्मीद से कहीं बेहतर प्रदर्शन किया. भाजपा उम्मीद के मुताबिक़ प्रदर्शन न कर सकी और यही हाल शिवसेना का भी हुआ.
परन्तु जानकार मानते हैं कि आख़िरी समय में शिवसेना ने आदित्य ठाकरे को CM के रूप में पेश किया और यही वजह थी कि भाजपा-शिवसेना के गठबंधन ने किसी तरह बहुमत हासिल कर लिया. ये बात शायद शिवसेना को पता भी लग गई कि महाराष्ट्र में शिवसेना के सम’र्थकों ने बढ़-चढ़ कर भाजपा को वोट इसीलिए दिया क्यूँकि उन्हें लगता था कि इस बार ठाकरे परिवार के सद’स्य को ये पद मिलेगा. अगर ध्यान दें तो भाजपा का प्रदर्शन उन सीटों पर ज़्यादा अच्छा रहा जो कभी शिवसेना का गढ़ थीं.
यही वजह थी कि शिवसेना को लगा कि वोट तो उसकी वजह से गठबंधन को मिला है तो मुख्यमंत्री पद की दावेदार वो ही है. शिवसेना ने भाजपा से ढाई साल के लिए मुख्यमंत्री पद की माँग कर दी. शिवसेना ने ये भी कहा कि ये बात पहले से तय थी और 50-50 फ़ॉर्मूला के तहत मुख्यमंत्री पोस्ट भी दोनों को मिले. भाजपा ने शिवसेना की चेतावनी को मोल-भाव की राजनीति समझा जिसका ख़ामियाज़ा उसे उठाना पड़ गया. भाजपा-शिवसेना का गठबंधन टू’ट गया. शिवसेना ने एनसीपी से बात शुरू की और एनसीपी के ज़रिये कांग्रेस से भी एक चैनल स्थापित हुआ.
एनसीपी ने समझदारी से क़दम बढ़ाए तो कांग्रेस ने भी किसी तरह की जल्दबाज़ी न की. कई मीटिंगों के बाद ये तय हुआ कि उद्धव ठाकरे इस नए गठबंधन के मुख्यमंत्री होंगे. अगले दिन ये था कि ये तीनों दल दावा पेश करेंगे लेकिन अगली सुबह ही ख़बर आयी कि एनसीपी के अजीत पवार भाजपा से मिल गए हैं और भाजपा नेता देवेन्द्र फडनवीस ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली है, अजीत पवार ने भी उपमुख्यमंत्री पद की शपथ ली. ये सब इतनी जल्दी हुआ कि लोग समझ ही नहीं सके कि कब राष्ट्रपति शासन हटा, कब भाजपा ने दावा पेश किया और कितने बजे शपथ हो गई.
अजीत पवार ने दावा किया कि शरद पवार का भी समर्थन उनके पास है. परन्तु शरद पवार ने इसका तुरंत खंडन किया. इस अप्रत्याशित शपथ ग्रहण से पहले तक कुछ भी ऐसा नहीं था जिससे लगता कि क्षेत्रीय दल भाजपा को चतुराई में हरा सकते हैं. परन्तु यहाँ शायद भाजपा ने क्षेत्रीय दलों से सीधा पंगा ले लिया. एनसीपी नेता शरद पवार ने सामने से आकर पार्टी को फिर से एकजुट करना शुरू किया. शिवसेना और एनसीपी ने पब्लिक फ्रंट पर साथ आकर मराठा एकता को मज़बूत किया. कांग्रेस चुपचाप एनसीपी का साथ देती नज़र आयी.
कांग्रेस के क्षेत्रीय नेता एनसीपी के साथ दिखे और सोनिया गांधी के क़रीबी लोग भी एनसीपी-शिवसेना के हर फ़ैसले में मौजूद रहे. कांग्रेस के वरिष्ठ वकीलों ने शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस के केस सुप्रीम कोर्ट में कामयाबी से लड़ा. परन्तु कोर्ट के बाहर शरद पवार ने सब कुछ ऐसे मैनेज किया कि भाजपा को कहीं से कोई रास्ता ही नहीं मिला. अदालत ने जब अपने फ़ैसले के लिए कार्यवाई को एक दिन और टाला तो भाजपा नेता ये बात कर रहे थे कि किस तरह से एनसीपी, शिवसेना और कांग्रेस अपने विधायकों को छुपा रहे हैं. मीडिया भी बार-बार यही कह रहा था कि शिवसेना और एनसीपी को लगता है अपने विधायकों पर भरोसा नहीं है. पर एनसीपी और शिवसेना का प्लान कुछ और था.
सूत्र बताते हैं कि एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार ने शिवसेना और कांग्रेस से कहा कि विधायकों को छुपाने की बजाय हम दिखाएँगे तब इनको पता चलेगा कि इन्होने क्या ग़लती की है.पवार के इशारे पर शिवसेना के वरिष्ठ नेता संजय राउत, जो शुरू से ही इस गठबंधन के लिए काम कर रहे थे, ने एक ट्वीट किया. उन्होंने महाराष्ट्र के राज्यपाल को टैग करते हुए कहा कि आज होटल ग्रैंड हयात में 162 विधायक जुटेंगे, आकर देख लीजिये. शाम सात बजे ग्रैंड हयात में 162 विधायक जुटे. एनसीपी,कांग्रेस, शिवसेना के अलावा सपा और दूसरे छोटे दलों के नेता भी मौजूद थे. इस एक शॉट से पवार ने भाजपा की सारी रणनीति को ध्वस्त कर दिया. पब्लिक के बीच में शिवसेना,एनसीपी, कांग्रेस ने ये सन्देश पहुंचा दिया कि बहुमत उनके पास है लेकिन भाजपा ने तिकड़म से सरकार हथिया ली है.
अगले दिन सुप्रीम कोर्ट ने अपना फ़ैसला सुनाया और भाजपा को बहुमत सिद्ध करने के लिए महज़ एक दिन का वक़्त दिया और इस प्रक्रिया को लाइव किया जाए, ऐसा आदेश दिया.प्रो-टेम स्पीकर की भी सीमायें तय कर दीं, भाजपा ने अदालत के इस फ़ैसले के बाद अपनी हार मान ली और पहले अजीत पवार और उसके बाद देवेन्द्र फडनवीस ने इस्तीफ़ा दे दिया. शिवसेना,कांग्रेस और एनसीपी ने दावा पेश किया और उद्धव ठाकरे का मुख्यमंत्री बनना तय हो गया. देखा जाए तो इस जीत में कांग्रेस का योगदान सिर्फ़ समझदारी से साथ चलने वाले सहयोगी का है जबकि मुख्य काम शिवसेना और एनसीपी ने ही किया है. इसका अर्थ ये भी हुआ कि दो क्षेत्रीय दल जिनमें से एक को ख़’त्म और दूसरे को कमज़ोर मान कर चल रहे लोगों को, इन्हीं दो दलों ने जवाब दिया है.